तीर्थंकर सरीखे होते हैंआचार्य भगवन्
तीर्थंकर आध्यात्मिक जगत में सर्वश्रेष्ठ शिरोमणि महापुरुष होते हैंउनमें से बढ़कर और होता है। पुण्य की पर-प्रकृतियों में से तीर्थंकर को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है। उनकी अवहेलना, अवमानना, आशातना करना दुर्लभ बोधि कारण बन जाता है और उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति सुलभ बोधि का स्थान बन जाता है। वर्तमान मे…
संयोग का अंत वियोग
साध्वीरत्ना श्री अनेकान्त श्री जी म.सा. संसार एक मेला है। मेले में हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। कुछ मिलते हैं तो कुछ से स्नेह संबंध जुड़ जाता है। संध्या तक सभी साथ-साथ रहते हैं। आमोद-प्रमोद में खूब मस्त हो जाते हैं और पर मेले के बिखरते ही सभी अपने-अपने स्थान पर पहुँच पहुँचकर सब एक दूसरे को भूल जाते …
Aagam Manthen
युगद्रष्टा युगद्रष्टा आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा. उत्तराध्ययन सूत्र : शिष्य का कर्तव्य मूल पाठ : अप्प पाणेऽप्प बीयम्मि, पडिच्छन्नम्मि संवुडे। समयं संजए भुजे, जयं अपरिसाडियं॥35॥ संस्कृत छाया : अल्प प्राणेऽल्प बीजे, प्रतिच्छन्ने संवृते। समकं संयतो भुञ्जीत यतमपरिशाटितम्॥ साधु अल्प प्राणों और…