प्रतिभा का प्रकटीकरण गुरु दूसरों को प्रसन्न रखकर स्वयं प्रसन्न रहने में ही जीवन की सफलता मानते हैं व वैसा ही करते हैं। गुरु हमेशा शिष्यों की प्रतिभा प्रकटीकरण कैसे हो, इस पर ध्यान देते हैं। शिल्पकार पत्थर से मूर्ति बने, इस ओर ध्यान देते हैं और बारिकी से टोंच-टोंच कर उस पत्थर सुंदर मूर्ति का रूप देते हैं। वैसे ही गुरु अनगढ़ पत्थर वत् शिष्य को शिक्षाओं के माध्यम से सुसज्जित करते हैं। छोटी से छोटी बातें बताकर जीवन को आगे बढ़ाते हैं। मन, वचन व काया की हर प्रवृत्ति सम्यक् उस ओर ध्यान देते हैं। विजातीय मोह की तरफ कदाचित् प्रवृत्ति होने शिक्षायें निकट भवी आत्माओं को अच्छी लगती हैं, मोह ग्रस्त आत्माओं को नहीं। मोह ग्रस्त आत्मा का ज्ञान भी अज्ञान रूप में रूपान्तरित हो जाता है। उनके सोचने का तरीका भी बदल जाता हैवे अपनी ही गलत सोच से वरदान रूप मिली ज़िन्दगी को अंधकार के गहरे गर्त में डाल देते हैं। जहाँ से आगे रास्ता दिखना भी बंद हो जाता है। उसके बाद सिर्फ ज़िन्दगी को जैसे-तैसे खींचना ही अवशेष रह जाता है। गुरु उस कुम्भकार की तरह से होते हैं जो ऊपर से अच्छा आकार देते हुये दूसरा हाथ उस वस्तु विशेष नहीं। मोह ग्रस्त आत्मा का ज्ञान भी अज्ञान रूप में रूपान्तरित हो जाता उनके सोचने का तरीका भी बदल जाता हैवे अपनी ही गलत सोच वरदान रूप मिली ज़िन्दगी को अंधकार के गहरे गर्त में डाल देते हैं।
गुरु कृपा