संयोग का अंत वियोग

साध्वीरत्ना श्री अनेकान्त श्री जी म.सा. संसार एक मेला है। मेले में हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। कुछ मिलते हैं तो कुछ से स्नेह संबंध जुड़ जाता है। संध्या तक सभी साथ-साथ रहते हैं। आमोद-प्रमोद में खूब मस्त हो जाते हैं और पर मेले के बिखरते ही सभी अपने-अपने स्थान पर पहुँच पहुँचकर सब एक दूसरे को भूल जाते हैं। संसार के सभी रिश्ते नदी-नाव संयोग की तरह हैं। जैसे महासागर में तिरते के टुकड़े को तैरता हुआ दुसरा लकड़ी का टुकड़ा मिल जाए दोनों आपस में टकराते हैं। कुछ दूर तक दोनों साथ-साथ भी इतने में अचानक बड़ी तेजी से एक ऊंची लहर आती है और अलग कर देती है। ठीक उसी प्रकार से सभी संयोग-वियोग में बदल जाते हैं। इस संसार का एक नियम है- हर संयोग का अंत वियोग में होता है। इस बात को समझते हुए भी मनुष्य का मन एक बहुत बड़ी भूल करता है। जब भी कोई संयोग उपस्थित होता है तो उसके साथ मेरेपन का धागा जोड़कर उस संयोग को संबंध में बदल देता है। यथासमय उस संयोग का जब वियोग होता है तो अपनी ही ममता के कारण व्यक्ति शोक में डूब जाता अतः संयोग के क्षणों में स्मरण रहे कि बहुत बड़ी दावत भी थोड़ी देर की होती है। संत-सतियां जी के विचरण के समाचार एवं पूज्य गुरूदेव की अमृतवाणी पढ़ने हेतु महासंघ के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें। अपने व्हाट्स-एप नंबर यथाशीघ्र भेजें... निरंजन मेहता (कार्यालय सचिव) 8376062144


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