तीर्थंकर आध्यात्मिक जगत में सर्वश्रेष्ठ शिरोमणि महापुरुष होते हैंउनमें से बढ़कर और होता है। पुण्य की पर-प्रकृतियों में से तीर्थंकर को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है। उनकी अवहेलना, अवमानना, आशातना करना दुर्लभ बोधि कारण बन जाता है और उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति सुलभ बोधि का स्थान बन जाता है। वर्तमान में तीर्थंकर नहीं है किंतु ‘जिन जिन सरीखे, केवली नहीं पण केवली सरीखे होते हैंउनमें से बढ़कर और कोई पुण्य की पर-प्रकृतियों में से तीर्थंकर ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है। उनकी अवमानना, आशातना करना दुर्लभ बोधि जाता है और उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति स्थान बन जाता है। तीर्थंकर नहीं है किंतु ‘जिन नहीं केवली नहीं पण केवली सरीखे वर्तमान में आचार्य देव के प्रति तीर्थंकरों जैसा हमारे मन में अहोभाव, श्रद्धा भाव होना चाहिए क्योंकि ही तीर्थंकर के प्रतिनिधि हैंआज जैन समाज अपनी मनौती पूर्ण करने न जाने कहाँ-कहाँ जाने । ऐसे में कोई कहां तो कोई कहां जड़ उपासना आचार्य भगवन्त होते हैं। वर्तमान में आचार्य देव के प्रति तीर्थंकरों जैसा हमारे मन में अहोभाव, श्रद्धा भाव होना चाहिए क्योंकि वे ही तीर्थंकर के प्रतिनिधि हैंआज जैन समाज भी अपनी मनौती पूर्ण करने न जाने कहाँ-कहाँ जाने लगे हैं। ऐसे में कोई कहां तो कोई कहां जड़ उपासना तक करने लगे हैं। उससे समकित प्रश्नांकित होती है। जैन ध में में समकित के साथ उपलब्धियों की भी विधि बतलाई गई है। हमें जिन धर्म मिला है, अरिहन्त शासन मिला है, ज्ञान गुरु जैसे महान आचार्य मिले हैं। हम उनके प्रति श्रद्धावान् बन जायेंगे तो हमारी आस्था हमें
तीर्थंकर सरीखे होते हैंआचार्य भगवन्